परिचय:
मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक सबसे शक्तिशाली और संगठित साम्राज्य था, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में की थी। इस साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल भूभाग पर शासन किया और प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और संस्कृति के क्षेत्र में अत्यंत उन्नति प्राप्त की।
1. मौर्य साम्राज्य की स्थापना:
चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य का योगदान:
मौर्य साम्राज्य की नींव चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु व रणनीतिकार आचार्य चाणक्य (कोटिल्य) ने रखी। नंद वंश के पतन के बाद चंद्रगुप्त ने मगध को जीतकर एक नए साम्राज्य की शुरुआत की।
आचार्य चाणक्य की नीति, कूटनीति और "अर्थशास्त्र" ने मौर्य शासन को मजबूती प्रदान की।
2. बिन्दुसार का शासन (297–273 ईसा पूर्व):
चंद्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिन्दुसार ने गद्दी संभाली। उन्होंने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत तक किया। बिन्दुसार के शासनकाल में प्रशासनिक स्थिरता बनी रही और व्यापार फला-फूला।
3. सम्राट अशोक का युग (268–232 ईसा पूर्व):
मौर्य साम्राज्य का स्वर्ण काल सम्राट अशोक के शासनकाल में देखा गया। प्रारंभ में वह एक वीर योद्धा थे, लेकिन कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) की भयानकता देखकर उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और "अहिंसा" व "धम्म" के मार्ग पर चले।
उन्होंने स्तंभ लेख, शिलालेख और बौद्ध धर्म के प्रचार से सामाजिक एकता और नैतिक शासन को बढ़ावा दिया।
4. मौर्य साम्राज्य का पतन:
अशोक की मृत्यु के बाद साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। उनके उत्तराधिकारी शासन में अनुभवहीन थे और साम्राज्य का नियंत्रण धीरे-धीरे क्षीण होता गया।
185 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की और शुंग वंश की स्थापना हुई। यही मौर्य साम्राज्य का अंत माना जाता है।
निष्कर्ष:
मौर्य साम्राज्य न केवल भारत का प्रथम संगठित साम्राज्य था, बल्कि इसकी प्रशासनिक व्यवस्था, आर्थिक नीति, और बौद्धिक परंपरा ने भविष्य की सभ्यताओं को भी प्रभावित किया।
चंद्रगुप्त की राजनीतिक कुशलता, चाणक्य की रणनीति, और अशोक की नैतिक शासन प्रणाली ने इसे इतिहास में अमर बना दिया।

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